लाशों के ढेर पर स्वतंत्रता नहीं सत्ता जीती जाती है।

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Power is won over a pile of corpses, not freedom.

जयपुर। आज 15 अगस्त( स्वतंत्रता दिवस) है भारत के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन। वो दिन जिसपर हर भारतीय खुशियां मनाता है मिठाईयां बांटता और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करता है। स्वतंत्रता दिवस हर भारतीय के लिए उतना ही खुशी भरा दिन है जेसे उसका जन्मदिन है। ओर फिर मॉडर्न इंडिया का जन्म भी तो इसी दिन हुआ था। साथ ही आप ने इतिहास पढ़ा है तो आप जानते होंगे की हमे स्वतंत्रता दिलाने में किस किस का योगदान रहा और 15 अगस्त को भारत के प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की वो फेमस स्पीच जो आज तक याद करी जाती है ‘ Tryst Of Destiny’ जिससे भारत के नए युग की शुरुआत हुई। परंतु क्या आप जानते है स्वतंत्रता की कीमत हमे कितनी जानो से चुकानी पड़ी थी और क्या होता अगर हमारे नेता सत्ता को पाने के लिए उतावले न होकर गांधी जी की बात मान लेते। आइए जानते है।

समय था 15 अगस्त 1947 का भारत के तीन टुकड़े किए जाते है वेस्ट पाकिस्तान –ईस्ट पाकिस्तान आज के समय का बांग्लादेश और भारत। पार्टीशन होता है और स्पीकर, रेडियो पर अनाउंसमेंट होता है की जिन्हे सरहद पार करनी है वो रवाना हो भारत से कई मुसलमान पलायन करते है
पाकिस्तान से कई हिंदू अपने बच्चो को लेकर ट्रेन, बैल गाड़ी, पैदल सरहद पार करते ही। इस पन्ने को इतिहास में हिस्टोरियंस ने मेगा माइग्रेशन कहा क्योंकि मानव ने इतिहास में इतना बड़ा माइग्रेशन न कभी देखा न सुना। माइग्रेशन का स्केल नापे तो कम से कम 14 मिलियन से ज्यादा लोगो ने सरहद पार करी और सांप्रदायिक दंगो की आग में 7,50,000 से ज्यादा लोग मारे गए।

जब इतिहास को समझा गया तब समझ आया के दोनो तरफ के नेता सत्ता के लोभ में इतने चूर थे की उन्हे अपनी कुर्सी के अलावा सब दिखना बंद हो गया । हालांकि जो स्थिति भारतीय राजनीति में चल रही थी गांधी, उन लाशों के ढेर को बोहोत पहले देख चुके थे। सत्ता धारियों को आगाह भी किया गया पर शेर के मुंह पर खून लग चुका था और अब फैसले से पीछे हटना दोनो सत्ताधारियों को नागवार गुजरा। अगर गांधी उस समय भी अपने लोगो के प्रति विरोध जताते तो शायद, भारत आज राजस्थान से मणिपुर नही बलूचिस्तान से मणिपुर होता। ओर जिस पाकिस्तान नाम को हम दुश्मन बनाए बैठे है उसका अस्तित्व में आना लगभग नामुमकिन। कभी कभी लगता है वो शक्स किस मनहूस घड़ी में पैदा हुआ होगा जिसके मन में हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग अलग देश बनाने का खयाल आया होगा। ओर आज जिन सेनानियों को हम मानते है उनकी रूह ऊपर से कितनी रोती – भिलकती होगी जब वो नीचे चल रही राजनीति देखते होंगे और देखते होंगे उनकी मृत्यु का फल।

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