Surgyan Maurya
KHIRNI
13 अगस्त के दिन भारत पूरी तरह ब्रिटेन का गुलाम बन गया, आइए हम इससे जुड़े कुछ तथ्य जानते हैं :–
इस पूरे घटनाक्रम की शुरूआत होती हैं East India Company से जिसने भारत में 1600 ई. में क़दम रखा। East India Company को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने अपने व्यापार का विस्तार करने की इजाज़त दी थी। लेकीन बाद में कम्पनी ने भारतीय उपमहाद्वीप के साथ व्यापार करना बन्द कर दिया था। शुरूआत में कम्पनी ने भारत में अपने कारखाने स्थापित करना शुरू किया, और धीरे– धीरे भारत के माध्यम से कम्पनी दुनिया का आधे से भी ज्यादा व्यापार करने लग गई। यह वह दौर था जब कम्पनी भारत के बिखरे हुए शासन में अपने अवसरों को तलाशती हुए आगे बढ़ रही थी। कम्पनी तेज़ी से अपना विस्तार किए जा रही थी और अंतत: कम्पनी ने भारत के बड़े भू–भाग पर स्थानीय अधिकारियों को लोभ देकर और उनके साथ संधि करके अपनी सेनाओं के दम पर पूर्ण रूप से अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। और भारत के शासक बन गए।

East India Company के प्रभाव में प्रमुख वृद्धि तब देखने को मिली जब 1757 में प्लासी की जंग जीतकर बंगाल में अपना शासन स्थापित कर लिया। यहां से कम्पनी अब अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए राजस्व वसूलने लगी, जिसका इस्तेमाल कम्पनी यूरोप की अन्य ओपनिवेशिक शक्तियों को भारत से खदेड़ने के लिए किया।
लेकिन 1770 में बंगाल में अकाल पड़ा और बंगाल की एक तिहाई आबादी उसमें जान गवा बैठी उससे कम्पनी के प्रोडक्शन में गिरावट हुईं और कम्पनी का व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ।
कम्पनी के ऐसे हालातों को देखते हुए ब्रिटिश संसद में एक अधिनियम लाया गया जिसमे कम्पनी को दिवालिया होने से बचाने के लिए चाय पर टैक्स को बहुत कम कर दिया गया।
और अब वह समय शुरू हुआ जब ब्रिटिश सरकार यह जान चुकी थी की अब East India company के हाथ में कुछ नहीं रहा। एक तरफ जहां East India company का पतन शुरू हो रहा था तो दूसरी ब्रिटिश सरकार का भारत में प्रवेश। और इसी क्रम में ब्रिटिश सरकार का रेगुलेटिंग एक्ट आया जिसमे कम्पनी को भारत की संप्रभुता को नियंत्रित करने का अधिकार तो दे दिया गया लेकीन कम्पनी को ब्रिटिश हुकूमत के अधीन कर दिया गया।
इस अधिनियम ने सत्ता में साझेदारी की समस्याओं को अनसुलझा सा बना दिया।
1784 के विलियम पिट्स इंडिया एक्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के मामलों की निगरानी और कंपनी के शेयरधारकों को भारत के शासन में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए इंग्लैंड में एक बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की।
छः सदस्यो की एक समिति बनाईं गई, जिसमे दो ब्रिटिश कैबिनेट के सदस्य और बाकी प्रिवी काउंसिल में से थे। कम्पनी द्वारा बनाया गया यह एक्ट 1858 तक अस्तित्व में रहा।
कुल मिलाकर बात की जाएं तो कम्पनी का इतिहास बहुत ख़राब रहा और कम्पनी ब्रिटिश हुकूमत के अधीन कार्य करती रहीं।
ऐसे ही अनसुने किस्से जानने के लिए बने रहिए thebawabilat.in के साथ
