Story of Durgadas The Great Of Jodhpur.
Jaipur. “माई ऐडा पुत जन, जेडा दुर्गादास।
बांध मुंडासे राखियो, बिना थांबे आकाश”
ये एक मशहूर कहावत है जो राजस्थान के घरों में कही जाती आ रही है । इसके नायक कोन है जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्त सिंह के सेनापति शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ । पर आज उनको क्यों याद किया गया, क्योंकि आज 13 अगस्त है जिसे राजस्थान में दुर्गादास जयंती के रूप में मनाया जाता है। पर उनका इतिहास पर कर ऐसा क्या असर है की उनकी जयंती मनाई जाए, तो बता दे की लेखक के शब्द कम पड़ जाए पर उनका व्यक्तित्व कोई न लिख पाए । शिरोमणि दुर्गादास को मानने के कारण है उनका त्याग, बलिदान, देश भक्ति और स्वामी भक्ति। ऐसे व्यक्तित्व पर अंग्रेजी की एक कहावत यथार्थ बैठती है थ मेन ऑफ हिस वर्डस।
दुर्गादास जी से स्वामी भक्ति का एक ऐसा किस्सा जुड़ा है जिसे सुनके आपका उनके प्रति सम्मान दोगुना बड़ जाएगा और अगर आप उन्हें नहीं जानते तो उन्हे हमेशा के लिए जान जायेंगे – जैसा कि हमने ऊपर बताया दुर्गादास की जोधपुर नरेश के सेना पति थे और जब जोधपुर नरेश मृत्यु के करीब थे उनका मन विचलित रहने लगा था, कारण था उनका कोई उत्तराधिकारी न होना। इसका पता जब दुर्गादास को पता चला तो दुर्गादास ने राजा को वचन दिया उनके उत्तराधिकारी के हमेशा सुरक्षा करने का और उसे जोधपुर गद्दी पर स्थापित करना । क्योंकि उनकी मृत्यु के समय उनकी दोनो रानिया गर्भ से थी। ओर जोधपुर राज्य पर नजर थी मुग़ल शासक औरंगजेब की हालांकि राजा जसवंत सिंह खुद औरंजेब के सेनापति थे पर मुग़ल शासक की नियत सही नही थी। राजा की मृत्यु हो गई दोनो रानियों में से एक का बच्चा पैदा होते ही मर गया और एक को लड़का हुआ नाम रखा गया अजीत सिंह। ये सुनकर की राजा की मौत हो चुकी है औरंजेब ने अपने पांव जोधपुर में बसा लिए कैसे गद्दी पर मुस्लिम शासक बिठा कर किस शर्त पर की जबतक जसवंत सिंह का बेटा बड़ा नही हो जाता जब तक इस राज्य का कार्यभार वही संभाले।
साथ ही अजीत सिंह को रानी के साथ दिल्ली रहने के आदेश जारी हुए ताकि वो औरंजेब की आंखों के सामने बड़ा हो सके या कहे तो मौका मिलने पर मार दिया जाए। वजह जोधपुर गद्दी। पर स्वाभिमानी राजपूत दुर्गादास को अपने राजा को मुगलों के बीच में बड़ा होना नागवार था। औरंजेब से अर्जी लगाई पर एक न सुनी गई फिर क्या था दुर्गादास ने अपने वचन को पूरा करने के लिए 300 घुड़सवार इखट्टे किए और अजीत सिंह को औरंजेब से छुड़ाने की तयार किया। इन घुड़सवार में से एक थे बिलुंडा के ठाकुर, योजना बनाई गई अजीत सिंह को छुड़ाया गया। उनके लिए एक कवि ने लिखा था.
आठ पहर चौबीस घडी, घुडले ऊपर वास।
सैल अणि सूं सेकतो, बाटी दुर्गादास ॥
ओर अरावली के पहाड़ों में 25 वर्ष तक छुपा कर रखा गया। उनकी शिक्षा का भी पूर्ण रूप से ध्यान रखा गया। फिर समय आया जब औरंगजेब की मृत्यु हुई और दुर्गादास को समय मिला अपने राज्य को जीतने का और अपने वादे को निभाने का। जोधपुर पर हमला बोला गया, जीता गया और नया उत्तराधिकारी घोषित किया गया जो थे राजा अजीत सिंह। ये कहानी एक मिसाल है दुर्गादास की स्वामिभक्ति और त्याग की। जिसमे कही न कही आज का युवा मात खा रहा है।