Jawaharlal Nehru’s speech “Tryst with destiny” , on the birth of Independent India

Tryst with destiny: आजाद भारत का पहला भाषण

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jawahar lal nehru Speech

Jawaharlal Nehru’s Tryst with destiny: आजाद भारत का पहला भाषण

नंदिनी चौहान

आगरा उत्तर प्रदेश
भारत रविवार यानी 15 अगस्‍त को अपना 75वां स्‍वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है | यह दिन भारत के गौरवशाली इतिहास के सबसे बड़े दिनों में से एक है | लंबे समय तक ब्रिटेन के उपनिवेश रहे भारत देश को 15 अगस्‍त 1947 को आजादी मिली थी | महात्‍मा गांधी समेत अनेकों स्‍वाधीनता सेनानियों के अथक प्रयासों के बाद देश ने आजादी की सुबह देखी और पहली बार इस दिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूने लाल किले पर तिरंगा फहराया था|

•~आजादी के समय भारत का कोई राष्‍ट्रगान नहीं था | 1911 में रविन्‍द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित ‘भारत भाग्‍य विधाता’ को ‘जन गण मन’ नाम के साथ 24 जनवरी 1950 को भारत के राष्‍ट्रगान का दर्जा दिया गया |
•~Indian Independence Act को 18 जुलाई 1947 को ही स्‍वीकृति मिल गई थी मगर लॉड माउंटबेटन ने देश को आजाद करने के लिए 15 अगस्‍त का दिन चुना था |
•~ भारत और पाकिस्‍तान को अलग करने वाली रेडक्लिफ रेखा 03 अगस्‍त 1947 को पूरी कर ली गई थी मगर इसे आधिकारिक रूप से 17 अगस्‍त 1947 को प्रकाशित किया गया |
•~भारत के तिरंगे झंडे का डिजाइन पिंगली वैंकैया ने 1921 में तैयार किया था | इसे 24 तीलियों वाले Ashok Chakra के साथ आधिकारिक तौर पर 22 जुलाई 1947 को भारत के झंडे के रूप में स्‍वीकृत किया गया और 15 अगस्‍त 1947 को पहली बार फहराया गया |
•~आजादी की घोषणा के साथ देशवासियों को सबसे पहले पंडित नेहरु ने संबोधित किया था और उनके इस ऐतिहासिक भाषण को A tryst with destiny नाम दिया गया |

पंडित जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) ने कहा था, ये समय आराम करने या चैन से बैठने का नहीं है, बल्कि लगातार प्रयास करने का है | भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना. इसका अर्थ है ग़रीबी, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना | लंबे संघर्ष के बाद भारत को ब्रिटिश हुकुमत से आजादी मिली थी | ऐसे में नेहरू का ये भाषण सभी देश वासियों के लिए जरूरी था| आपको बता दें, ये किस्सा उस समय का है जब नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं बने थे |

पंडित नेहरू ने 14-15 अगस्‍त 1947 की मध्‍य रात्रि दिया था | ये ऐतिहासिक भाषण, आज जाना जाता है ‘ Tryst with destiny‘ के नाम से,आइए जानते हैं उनके इस भाषण के बारे में

पंडित नेहरू का नियति से साक्षात्‍कार भाषण…

बहुत साल पहले हमने नियति से एक वादा किया था और अब उस वादे का पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक पूरा करने का वक्‍त आ गया है | आज जैसे ही घड़ी की सुईयां मध्‍यरात्रि की घोषणा करेंगी, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और आजादी की करवट के साथ उठेगा |

यह एक ऐसा क्षण है, जो इतिहास में यदा-कदा आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दमित आत्‍मा नई आवाज पाती है | यकीकन इस विशिष्‍ट क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें |
इतिहास की शुरुआत से ही भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की. अनगिनत सदियां उसके उद्यम, अपार सफलताओं और असफलताओं से भरी हैं | अपने सौभाग्‍य और दुर्भाग्‍य के दिनों में उसने इस खोज की दृष्टि को आंखों से ओझल नहीं होने दिया और न ही उन आदर्शों को ही भुलाया, जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुई | हम आज दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं | आज भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है |

आज हम जिस उपलब्धि का जश्‍न मना रहे हैं, वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है | इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हमारे अंदर पर्याप्त साहस और अनिवार्य योग्यता है?
स्वतंत्रता और शक्ति जिम्मेदारी भी लाते हैं | वह दायित्‍व संप्रभु भारत के लोगों का प्रतिनिधित्‍व करने वाली इस सभा में निहित है | स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ाएं सहन की हैं और हमारे दिल उनकी दुखद स्‍मृतियों से भारी हैं | कुछ पीड़ाएं अभी भी मौजूद हैं | बावजूद इसके स्याह अतीत अब बीत चुका है और सुनहरा भविष्‍य हमारा आह्वान कर रहा है |

अब हमारा भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि उन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के निरंतर प्रयत्न से हैं जिनकी हमने बारंबार शपथ ली है और आज भी ऐसा ही कर रहे हैं ताकि हम उन कामों को पूरा कर सकें | भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीडि़त जनों की सेवा है | इसका आशय गरीबी, अज्ञानता, बीमारियों और अवसर की असमानता के खात्‍मे से है |
हमारी पीढ़ी के सबसे महानतम व्‍यक्ति की आकांक्षा हर व्‍यक्ति के आंख के हर आंसू को पोछने की रही है | ऐसा करना हमारी क्षमता से बाहर हो सकता है लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा |

इसलिए हमें सपनों को धरातल पर उतारने के लिए कठोर से कठोरतम परिश्रम करना है | ये सपने भले ही भारत के हैं लेकिन ये स्वप्न पूरी दुनिया के भी हैं क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक-दूसरे से इस तरह गुंथे हुए हैं कि कोई भी एकदम अलग होकर रहने की कल्‍पना नहीं कर सकता…जय हिंद.

जवाहरलाल नेहरू का यह भाषण , आप नीचे दिए गए इस लिंक के माध्यम से भी सुन सकते हैं.https://www.youtube.com/watch?v=lrEkYscgbqE

4 COMMENTS

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